तमाम उम्र बेजार ढूँढता था जिसे नश्तर ए इश्क
चुभा लिया मैने
दरिया ए रेत सुलगती में
दरिया ए समुन्दर पा लिया मैने
भारत के अध्यात्मिक छेत्र में रामाश्रम सत्संग मथुरा एक क्रांतिकारी मशाल है । वर्त्तमान में इसी सत्संग परिवार के परम संत पूज्य श्री कृष्णकांत शर्माजी देश के कोने कोने में जाकर रामाश्रम सत्संग के संस्थापक समर्थ गुरु परम संत परम पूज्य डॉ चतुर्भुज सहाय जी के सन्देश एवं साधना शैली को अपने ओज पूर्ण , मधुर और प्रभावशाली प्रवचनों के द्वारा आत्मा का जागरण कर जन जन को प्रेम के एक सूत्र में बांधने का कार्य कर रहे हैं ।
उनसे मेरी पहली मुलाकात 2002 में टूंडला आश्रम के प्रांगण में हुई । गौरवर्ण, चौड़ा ललाट, चेहरे पर मधुर मुस्कान , चरण छूते ही मुझसे कहा "तुम खूब आये"। मैं ठगा सा रह गया। ऐसा लगा यह महापुरुष मुझे जन्मो से जानते हैं। कैसे पहचान गए ? सरकारी नौकरी के कारण मैं उनसे ज्यादा नहीं मिल पाया केवल रामाश्रम सत्संग के कुछ भंडारों में उनके दर्शन हुए । मन में एक कचोट सी रहती थी कब उनसे फिर मिलूं। वर्ष २००७ में सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट ली। जीविकोपार्जन की बाधा समाप्त हो गई । तब से उनकी आज्ञा से उनके साथ भारत के कोने कोने एवं प्रान्तों में भ्रमण करने का मौका मिल रहा है | आत्मबोध वेबसाइट एक तुच्छ सा प्रयास है , उनके शब्दों के माध्यम से रामाश्रम सत्संग के विचारधारा एवं मूल्यों को जन जन तक पहुंचाने का ।
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