आप जब पैदा हुए थे आपके माता—पिता आपको पिंटू, चिंटू जैसे किसी नाम से बुलाते थे I बड़े हुए तो आपका नाम-संस्कार हुआ, पंडितजी ने, मौलवी ने आपका नाम रखा, और बड़े हुए जिस जाति के हो उस नाम से बुलाया जाने लगा I ब्राह्मण हुए तो पंडितजी कहने लगे , ठाकुर हुए तो ठाकुर साहब कहे जाने लगे या सेठ जी कहे जाने लगे। इससे और बड़े हुए कोई पद आपको मिल गया आपका नाम पदाधिकारी वाला ही हो गया। अब आप स्टेशन मास्टर है , एस. डी. एम . है , एम. एल. ऐ है , ।
इतने नाम हैं आपके, लेकिन रात्रि में जब आप सोते है तब आपका कोई नाम नही रहता लेकिन जब जागते है फिर सभी कुछ वैसा ही हो जाता है। तब फिर आपका परिचय क्या है ?
आप जानते है यह सारा नाम-- रूप इत्यादि चलते रहते है ऐसे ही है जैसे कोई चित्रकार कोई चित्र बनाता हो I एक कागज है, उसपर एक चित्र बनाया, उसमे स्त्री की वेशभूषा दिखा दी, वह चित्र स्त्री का हो गया, एक और चित्र उसमे पुरुष की वेशभूषा बना दी वह पुरुष का हो गया I आखिर इन दोनों में सत्य क्या है? स्त्री या पुरुष ? वास्तव में है क्या ?
देखा जाए तो उस कागज से पहले क्या है ? चित्रकार के दिमाग, एक रूपरेखा है और एक कागज है उसपर चित्रकार ने जैसा उसके दिमाग में शक्ल है वैसा ही उसने कागज पर चित्र बना दिया I ऐसा ही यहाँ का नियम है यहाँ है कुछ भी नही। उस परमात्मा की एक इच्छा है ।
हम आप एक इच्छा है उस परमात्मा के , सबमे परमात्मा है लेकिन प्रकृति का सयोंग होने से नाम और रूप बन गया I पुराणों में एक बहुत अच्छा उदाहरण आता है कि सृष्टि से पहले कि यहाँ पर पारब्रहम परमात्मा ही परमात्मा था , सृष्टि नही थी I उस परमात्मा के मन में इच्छा पैदा हुई ........एकाकी न रमते , एकम सः बहुस्यामि I रमण अकेले में नही होता I आप कितना ही धन ले ले लेकिन जंगल में बैठ जाएं, तब धन भी किसी काम का नही होता है I रमण कहाँ होता है जहां बहुत होते है। आप परिवार में है अकेले रह जाते है, बच्चे चले जाते है तो समय काटना बहुत मुश्किल हो जाता है, आनन्द नही रह जाता है I रमण बहुतों के साथ होता है I
ऐसे ही उस ईश्वर में एक इच्छा पैदा हुई कि एक से बहुत हो जाऊँ । बहुत होने के लिए यहाँ प्रकृति का निर्माण हुआ I प्रकृति में निर्माण का काम है जैसे आप मकान बनाते है ईंट-गारा इत्यादि सब लगाते हैं, तब कमरे का निर्माण होता है। ऐसे ही यहाँ पर अभिनय के लिए सामग्री भी चाहिए। यह प्रकृति भी यहाँ सामग्री ही है जिससे हमारा आपका सबका निर्माण हुआ है वही परमात्मा यहां पर सबमे बैठा हुआ है I जैसे उस कमरे को हमने बालू-सीमेंट-ईंटो से बनाया है , वैसे ही उस परमात्मा ने प्रकृति के साथ मिलकर यहाँ निर्माण किया है, वह यहाँ बैठा हुआ है I लेकिन जैसे मुझे कमरा बाहर से सुंदर और अच्छा लगता है, अंदर क्या है वह में देखता भी नही ?
ऐसे ही यह प्रकृति भी जिससे यहाँ का निर्माण हुआ है वह बहुत रमणीक है और मै इसी में रमण करता रहता हूँ I अर्थात आत्मा को नही केवल प्रकृति को ही जाना I उसको नही जाना जहाँ सत चित आनन्द है I जैसे एक संतरा का फल , बाहरी छिलका लगा होता है अंदर उसमे गूदा होता है। छिलका खाते रहे, कड़वा लगेगा अंदर रस भरा हुआ है, अंदर देखा नही, खाया नही अर्थात क्या लेते रहे दुःख और अशांति।
यह जो देह का निर्माण हुआ हमको भी उससे स्नेह हो गया । जैसे चित्रकार की इच्छा थी उससे पहले क्या था, एक कागज था ऐसे ही यहाँ पर है कुछ नही, हम और आप इतने नाम और रूप धारण किये हुए है, कोई एक ऐसा भी है जिसने कोई नाम रूप धारण नही किया । आप जानते है जो साधना हम और आप कर रहे हैं उस साधना में एक ऐसा मुकाम आता है जहाँ हमे सारा ज्ञान होता है मेरे जितने नाम -- रूप है सभी मुझे याद है इससे और आगे साहित्य का अध्ययन किया मेरे अपने अनुभव है सब मेरे साथ है इसी में एक अवस्था और आती हैं जहाँ पर यह सारा कुछ छूट जाता है I
साधना के इन MILESTONES को सम्प्रज्ञात समाधि , असम्प्रज्ञात समाधि कहा जाता है I सम्प्रज्ञात समाधि जहाँ मुझे सारा ज्ञान था I असम्प्रज्ञात समाधि जहाँ सारा छूट गया, सब भूल गया I चित्रकार ने चित्र हटा दिया बस अब केवल कागज रह गया इससे भी आगे वह भी नही रहा। यह साधना की अवस्थाएं है । हम जब साधना करते रहते है उससे आगे वो मुकाम मिलता है I बहुत ज्ञान हो जाता है घण्टो अब किसी बात पर बोल सकता हूँ , प्रवचन कर सकता हूँ बहुत कुछ बात अब मुझे मालूम है लेकिन इससे काम चलेगा नही I यह ज्ञान आपको काम देगा नही।
एक बहुत अच्छी अवस्था और आवेगी जहाँ सब कुछ भूल जाएगा I आप जानते है आपको आराम कब मिलता है? नींद में आपका सबकुछ छूट जाता है तब गहरी नींद आने पर आपको आनन्द मिलता है I ऐसे ही इसमें भी है, जितने आप गुरु के नजदीक होते जाएंगे, इन सबको आप भूलते जाएंगे न ही नाम रहेगा न रूप रहेगा जो कुछ है वह सब कुछ छूटता जाएगा I न नाम न रूप, बस एक जीव नाम संज्ञा रह जाएगी I और जब आप जीव नाम, रूप संज्ञा से अलग चले जाएंगे तब आप उस आनन्द में प्रवेश कर जाएंगे I
महारास हुआ, गोपियां उसमे भाग ले रही थी भगवान कृष्ण और गोपियां थी। लेकिन गोपियां क्या थी ? वह ऋषि-- मुनि थे पहले समय के I उन्होंने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान ..... हमने यह ब्रह्म आनन्द की अनुभूति दो । ध्यान में हमने आनन्द लिया लेकिन उससे भी आगे परमानन्द की क्या अवस्था होती है उसे हम जानना चाहते हैं। हम उसमे रमण करना चाहते हैंI
भगवान श्री कृष्ण ने कहा ठीक है द्वापर में मेरा कृष्ण अवतार होगा I वह मेरा प्रेम का अवतार होगा और आप सब लोग उसमे आओ। वह सभी ऋषि --- मुनि थे, इस परमानन्द की प्राप्ति के लिए यहाँ पर गोपी -- गोप बने। ब्रह्मानन्द की प्राप्ति के लिए वे गहरे ध्यान में गए उसकी अनुभूति हुई परन्तु उस परमात्मा की अनुभूति को प्रकृति के आँखों में न देखा , न कानो से सुना न ही स्पर्श किया I गोप गोपियाँ बन कर प्रकृति में रहकर उन्होने उस आनंद को देखा, कानो से सुना , स्पर्श किया । इसी को परमानन्द की अवस्था कहते हैं I इसमें कब प्रवेश होता है जब आपके सभी नाम-- रूप छूट जाते है और तब मुझे जीव नाम की संज्ञा प्राप्त होती हैं, जहाँ न में स्त्री हूँ न पुरुष हूँ कोई भी चीज़ मेरे साथ नही है I तब परमानन्द की प्राप्ति होती है और यही महारास होता है I भगवान कृष्ण ने गोपियों को वही अनुभव करवाया था। उनको वह सरलता में ले गए I उनका स्त्री-- पुरुष का भेद भी मिटा दिया सब भेद मिटाते ---मिटाते वहाँ तक ले गए जहाँ अनुभव हुआ कि “जो मै हूँ तुम भी वही हो” I तब आनन्द बरस रहा था । सभी गोप--- गोपियां उस आनन्द में निमग्न है किसी को कुछ होश नही।
यह केवल द्वापर युग की ही बात नही आज भी वही बात है। गुरु हमे वहां ले जाना चाहते है जहाँ पर मेरा यह नाम-रूप सब कुछ छूट जाए, मैं इन सबसे ऊपर आ जाऊं । न स्त्री न पुरुष न कुछ और। आत्मा न स्त्री है न पुरुष है, उसमे कोई भेद नही है। गुरु भी वही चाहते है न कोई स्त्री रहे न कोई पुरुष, सब भेद मिट जाए I तब न ही राग रहेगा न ही द्वेष रहेगा न कोई और विकार रहेगा I केवल मात्र आनन्द रह जाएगा I महारास होगा, कृष्ण की बंसी बजेगी और हम और आप उस आनन्द में निमग्न हो जाएंगे I ऐसे ही साधना में गुरु चाहता है हमारे नाम-- रूप सब मिट जाए जहाँ उस परमानन्द की अनुभूति करे, गुरु का दर्शन आँखों से करूँ, कानो से उनकी वाणी सुनू, हाथों से उनका स्पर्श करूँ और परमानन्द में सारा शरीर वहीँ चला जाए I गुरु यही चाहता हैI हमारे गुरुमहाराज ने वही साधना दी जिसके द्वारा आज के युग में जहाँ सारे विकार सब राग-- द्वेष मिट जाते हैं और आप इन विकारों से ऊपर उठते जाते हैं और तब आप महारास की अवस्था में पहुंच जाएंगे I इन्ही कानो से आपको वंशी की आवाज़ सुनाई देगी, इन्ही कानो से आप गुरु की वाणी सुनेंगे, आंखे दर्शन करेंगी, हाथ स्पर्श करेंगे I जीवन में आनन्द भर जाएगा । यह अवस्था हमें बहुत बार बड़े-बड़े भण्डारो में अनुभव होता है । वहाँ गोपियाँ जैसे हम अपना सभी कुछ भूले हुए रहते हैं । न दिन का पता रहता है न रात का, न खाने-पीने का न सोने की चिंता रहती है। हम सभी उस आनन्द में निमग्न रहते हैं । हमारे कृष्ण ने भी यहां बंसी बजाई और उनका सारा रास आज भी चल रहा है कभी समाप्त नही हुआ कभी समाप्त भी नही होगा । हमारा आपका सौभाग्य है हमे उसमे बैठने का अवसर प्राप्त होता है । हम उसके पात्र भी थे या नही थे यह भी हम नही कह सकते उन्होंने हमे पात्र बनाया और उस पात्र को आनन्द से भर दिया I उन्ही गुरुमहाराज से प्रार्थना है न हममे श्रद्धा है न पात्रता है जैसे कृष्ण ने गोपिओं को बनाया उनके सारे विकारों को हटा दिया ऐसे ही हम पर कृपा करे I नाम -- रूप सब भेद मिटा दे I यह साधना वही सीढ़ी है जो धीरे--- धीरे हमे वही पहुंचा देगी जीवन का ध्येय जो था बस उसी आनन्द से भर जाए और जीवन का श्रेयस प्राप्त कर जाएंगे I
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