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We originate from the source energy, the 'Soul', and we have to return back there. This is the main purpose of our life

Shri Krishnakant Sharmaji

Our simple process of spiritual practice uplifts seekers to a peaceful state where they realise their True Self

Param Pujya Shri Krishnakant Sharmaji

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत, क्षुरासन्न धारा निशिता दुरत्यद्दुर्गम पथ: तत् कवयो वदन्ति |

Katha Upanishad

सत्संग समर्थ गुरु के हृदय से प्रवाहित एक पवित्र धारा है

परम पूज्य श्री कृष्णकांत शर्माजी

सत्संग एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से हम जीवन की पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं

परम पूज्य श्री कृष्णकांत शर्माजी

Blog For Life

एक पहेली

ऐसा सुनते है “बड़े भाग्य मानुष तन पावा” । पर हमारी समझ में आता नही  कि इसमे सौभाग्य कि क्या बात  है? मनुष्य शरीर  में पैदा हुआ तो क्या विशेषता प्राप्त हो गई ?

आज आम आदमी  पशु की तरह जीवन व्यतीत कर रहा  है । गरीबी, बिमारी  इत्यादि से जूझ रहा  है । यह विपरीत अवस्था हमारी क्यों है? यह एक पहेली  है । जिसने इस पहेली को बूझ लिया वो महान हो गया जो  नही बुझा पाया  उसने चाहे कितना ही धन कमाया हो , कितनी  ही विद्या प्राप्त कर ली हो, कितना ही यश प्राप्त कर लिया हो लेकिन जो आनन्द जीवन की पहेली बूझने  वाले को मिला वो किसी और को नहीं ।

तुलसीदास जी कहते हैं “ चहौं न सुगति, सुमति, संपति कछु, रिधि सिधि बिपुल बड़ाई । हेतु रहित अनुराग राम पद बढ़ै अनुदिन अधिकाई” । न मुझे सुगति चाहिए न धन-सम्पति रिद्धि-- सिद्धि की कामना है । मैने अपने जीवन में बहुत से गलत काम किये है उनकी माफ़ी भी मैं आपसे नही माँगता I मै यह भी नही कहता कि मनुष्य शरीर मुझे प्राप्त हो I एक ही प्रार्थना है कि आपकी कृपा मुझ पर सदैव बनी रहे I यह अवस्था उसे ही प्राप्त है जिसने जीवन की इस पहेली को बूझ लिया - न धन की न पद की न मुक्ति की इच्छा कोई इच्छा नही I जीवन में पूर्णता प्राप्त कर ली I संसार की सारी चीज़े नीचे रह गयी I  उससे बहुत ऊपर बैठ गया I

जीवन की पहेली बूझने  का उपाय क्या है ?  रामायण में बड़ा सुंदर प्रसंग आता है I भगवान राम बैठे हुए थे   उनके साथ लक्ष्मण जी भी बैठे हुए थे यही प्रश्न  पूछते है भगवान राम से कि  जीवन की पहेली को बूझने का उपाय  क्या है ? भगवान राम कहते है थोड़े में ही कहूँ भुजाई, सुनउ  तात मन मति चित लाई I बहुत लंबी चौड़ी बात नही है, घण्टो उपदेश नही है, एक स्थिति है जिसे तुझे जानना है। मन,बुद्धि चित्त को शांत कर लो , यह तीन काम यदि कर लेंगे तो आप उस अवस्था में पहुँच जाएंगे जहाँ   बिना कुछ किये ही आप जीवन कि  पहेली को  बूझ  जाएंगे, जीवन का श्रेयस प्राप्त कर जाएंगे I किसी से पूछना नही पड़ेगा I 

जैसे कबीर साहब ने बहुत सुंदर कहा है तन थिर मन थिर बचन थिर सुरति निरति थिर होय। कहें कबीर या निमिष को कल्प न पावै कोय॥ I महर्षि पतंजलि ने योग शास्त्र में कहा है चित्त की वृत्तियाँ यदि शांत हो जाए अर्थात  तुम्हारा मन, बुद्धि, चित्त शांत हो जाएगा तब तुम्हारा आत्मा से  योग हो जाएगाI तब तुम्हे  स्वधर्म प्राप्त होगा I महर्षि ने बताया कि  आत्मा से योग होने पर तुम अपनी मूल अवस्था  को प्राप्त कर जाओगे I अपने को जान लोगे की प्रकृति का बनाया हुआ शरीर मात्र ही नही हूँ , बल्कि मै आत्मा हूँ , शरीर तो मरेगा एक दिन, शरीर दुःख पाएगा ,उसको दुःख मालूम होगा लेकिन मै आत्मा में बैठा हूँ , न यहाँ जन्म है न ही मृत्यु है न रोग न भोग, कुछ भी नही है, पूर्ण शांति है  I जीवन की पहेली हल हो जाएगी

यहाँ प्रकृति में बहुत सी समस्याएं है लेकिन आत्मा में संसार की सारी समस्याओं का समाधान  है I  जो आत्मा में बैठ गए उन्हें सब कुछ प्राप्त हो गया I नचिकेता से  यमराज कहते है कि तू अभी  बालक है, इस ज्ञान को प्राप्त करके क्या करेगा ? संसार के सारे  भोग --विलास और उससे भी ज्यादा तुझे मै दूँगाI तब बालक नचिकेता ने कहा -- नही महाराज  मुझे जीवन की पहेली बुझा दो । मैं जान जाऊं कि आत्मा क्या है ?  मुझे धन, संपत्ति , यश कुछ नही चाहिए I

राजा जनक अपना  सारा राज्य देने को तैयार थे  इस जीवन की पहेली को समझने के लिए  I जब यह पहेली बूझ  ली जाएगी तो जीवन में सहजता, सरसता आ जाएगी  I एक बात मैं और कहना चाहूँगा शायद कोई बुरा मान जाए कि एक ऐसा काल आया जहाँ हमने ईश्वर को एक मनुष्य रूप में पैदा कर लिया I मै तो मनुष्य बना ही बना लेकिन मैंने ईश्वर को भी मनुष्य बना लिया I मैंने राम, कृष्ण और शिव बना दिया। ईश्वर को एक स्वरूप में ले आया I यह समझा नही कि परमात्मा है क्या? अरे यहाँ तो जहाँ पर भी दृष्टि जाती है वहाँ परमात्मा ही परमात्मा है

पर हम लोगों ने अपनी  बुद्धि  से कुछ और पैदा कर लिया, वह मनुष्य हो गया, परमात्मा से  अलग हो गया I राम परमात्मा नही है लेकिन वह यहाँ पर परमात्मा स्वरूप में काम करने आया है I सब मे जो रमा हुआ है वह राम है, कृष्ण आकर्षण है, प्रेम है । कृष्ण का  यहाँ आना प्रेम फैलाने के लिए आना है। वही परमात्मा स्वरूप यहीं  आया है ।  परमात्मा इससे बहुत बहुत ऊपर है I

जैसे आपने पढ़ा होगा रामकृष्ण परमहंस माँ की पूजा करते थे। माँ साक्षात विराजमान होती थी I वह माँ को भोग लगाते थे, बात करते थे । तोतापुरी नाम के एक महात्मा वहां से जा रहे थे । उन्होंने रामकृष्ण परमहंस जी कि अवस्था   देखा  तो बोले “अरे क्या माँ यही तक है केवल मंदिर में विराजमान है ? माँ तो  इससे आगे और बहुत आगे देखो, बढ़ोI उनको ले गए उस अवस्था में जहाँ ठाकुर ने  देखा माँ मंदिर तक ही नही यहाँ प्रत्येक व्यक्ति में वही माँ है I 

एक राम दशरथ घर डोले, एक राम घट- घट में बोले , एक राम का सकल पसारा , एक राम है सब से न्यारा II परन्तु मै तो राम को एक मनुष्य मात्र मान कर ही रह गया उस अवस्था मे नही गया जब यहाँ सबमे उस राम का सकल पसारा है I यदि वहाँ जाता तब मेरी पहेली बूझ जाती, मेरा जीवन सुंदर बन जाता तब मै मनुष्य नही रहता वही परमात्मा ही  बन जाता I परन्तु मैं  यहाँ जो विशाल समग्र परमात्मा है उससे अलग हो गया और यह अलग होना ही मेरी कमी है I उससे मै जुड़ जाऊँ किसी तरह से I

आप भगवान राम का जीवन चरित्र ही देखें I राम को  ईश्वर बनाने के लिए  कैकयी ने सोचा कि राज्य तो तुम्हारा है ही पर भगवान कैसे बनोगे, उसका उपाए किया।         

                     तापस भेष, विशेष उदासी,

                     चौदह बरस राम बनवासी II 

कैकयी ने राजा दसरथ  से वरदान माँगा राम के लिए चौदह वर्ष बनवास और  अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राज्य । माँगने को वह भरत के लिए आजीवन भी राज्य माँग सकती थी परन्तु कैकयी का इसके पीछे यह विचार था कि  राजकुमार राम में  ईश्वरतत्व प्रकट करना  है ।  यह उस गरीब समाज में जाए , उनके साथ बैठे , उनके सम्पर्क में जाए तब  इनका जो यह रोग है राजकुमार होने का  वह निकल जाएगा  I भील से, शबरी से सबसे भेंट करे I उस अवस्था में जाए तब यह रामतत्व को प्राप्त कर जाएंगेI

ऐसे ही वास्तव में  मैं मनुष्य हूँ , मै ब्राह्मण हूँ, मै क्षत्रिय हूँ धनवान हूँ मै विद्वान हूँ  यह सारे जितने भी कपड़े ओढ़ रखे है इन कपड़ो के कारण परमात्मा से अलग हो गया । बरसात तो हो रही थी लेकिन मैंने छाता लगा लिया और बरसात का आनन्द नही लिया  I पानी तो बरस ही रहा था लेकिन  मानुष तन  रुपी  कपड़े पहन कर  परमात्मा से अलग हो गए।   उन्हें उतार दो तब तुम भी भीग जाओगे, आनन्द में निमग्न हो जाओगे, ईश्वर में लय हो जाओगे I बिना हवा के तो हम रह सकते है लेकिन ईश्वर के बिना आप कल्पना भी नही कर सकते जीने को

ईश्वर मेरे इतना समीप है लेकिन मैंने उसे छोड़ दिया I  मै विद्वान बन गया , धनी बन गया ,  ब्राह्मण बन गया।  ईश्वर को छोड़ कर यहाँ चला आया  I आनन्द की बरसात को कैसे लूं इसके लिए  यह सारी पदवी छोड़नी पड़ेगी I जहाँ यह सब काम, क्रोध, लोभ- मोह विकारों के कपड़े उतार देंगे आप भी बरसात का आनन्द लेंगेI जितनी पदवी छोड़ते जाएंगे उतने सरलता सहजता में आप आते जाएंगे  और न मेरा,  न तेरा अपने न पराये कुछ भी नही सब अपने लगने लगेंगे  I वह विशालता आ जाएगी  I

जैसे मैंने कहा जब मै उस आत्मा में बैठ जाऊँगा स्वधर्म मेरे सामने आ जाएगा I स्व दो तरह से समान होता है स्व हम शरीर से भी कहते है, स्व आत्मा से भी कहते है I इस शरीर का धर्म तो मै जानता हूँ मै हिन्दू हूँ , क्षत्रिय हूँ मेरा यह धर्म  शरीर में तो मै-- मेरा, तु--- तेरा है  लेकिन आत्मा का धर्म क्या है उसमे कोई भेद नही है I  सभी एक है, आत्मा में कोई अंतर नही है I आत्मा में बैठकर मेरे सारे भेद समाप्त हो जाएंगे I एक विशाल समाज मेरा परिवार होगा। यह ‘मै’ निकल जाएगा और आप कितने आनन्द में होंगे आप अन्दाज़ा नही लगा सकते I आप और बच्चे   रात्रि में  सोने जाते तब गहरी नींद मै आप चले गए वहाँ न बच्चे रहे , न धर्म रहा , कुछ भी नही रहा । सुबह देखता हूँ बहुत गहरी नींद आयी बहुत आनन्द आया वो भी मेरा अहम बोल रहा था अभी , जहां तक अहम है वहां तक पहेली बूझी नही , पहेली कब बूझेगी जब यह अहम भी समाप्त हो जाएगा । जहाँ पर मेरा अहम भी निकल जाएगा कोई कारण नही रह जाएगा तब आनन्द की अवस्था में चले जाएंगे।  पहेली को सुलझा लेंगे। तब आपके सम्पर्क में जितने भी व्यक्ति बैठे होंगे , जितने भी पशु-- पक्षी वह सारे अपने मतभेद भूल जाएंगे सभी उसी  आनन्द में निमग्न हो जाएंगे I वो चीज़ जीवन की पहेली को बूझने  पर प्राप्त हो जाएगी I जब आपका मन, बुद्धि, अहम सारे शान्त हो जाएंगे तब आपकी अवस्था आनन्द की अवस्था होगी I

हमारे गुरुमहाराज ने वही प्रयास किया कि हम और आप सभी उस अवस्था में पहुँच जाए जहाँ मेरा अहम  जो स्वधर्म में बाधा बन रहा है शुन्य  हो जाए तब मै ज्ञान की  द्रष्टा होऊँगा I ज्ञान की  इस अवस्था को पश्यन्ति कहते है। तब मै देखूँगा वास्तव में यहाँ मनुष्य नही है, सर्वत्र परमात्मा ही परमात्मा है I उन्होने  कहा विकार निकलना तुम्हारा काम नही है । यह मेरा काम है I  एक बहुत सरलतम क्रिया दे रहा हूँ । तुम मेरे सामने बैठ जाओ मेरा काम है कि मै तुम्हारे मन, बुद्धि , अहम में प्रवेश करूंगा तब तुम्हारे अंदर की प्रकृति निकल जाएगी  आप आत्मा में बैठे जाओगे  I जीवन की पहेली बूझ  जाएगी और तुम्हे श्रेयस प्राप्त हो जाएगा ।

 

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