ध्यान का रहस्य क्या है? उसका स्वरूप क्या है? ध्यान करने से क्या लाभ है? ध्यान कैसे करना चाहिये । अध्यात्म के पथ पे चलने वालों के लिये इन सब प्रश्नों के उत्तर जान लेना आवश्यक है।
हम जो भी काम हम करते हैं अगर ध्यान से करते हैं तो सफलता मिलती है। ध्यान नही लगाते तो सफलता नहीं मिलती। ध्यान होता क्या है? हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। नाक, कान, आँख, जिव्हा, एवं त्वचा। यह ज्ञान लेने के यंत्र हैं। हमारे पास मन है। मन जिस इन्द्रि पर ठहरता है वह इन्द्रि ज्ञान लेने लगती है। मेरा मन आँखो पर है तो बारीक से बारीक चीज देख लेता हूँ। कानो पर है तो दूर की आवाज सुन लेता हूँ। जिस इन्द्र पर मन होता है वह सक्रीय हो जाती है। इसे हम सांसारिक ध्यान कहते हैं। कोई बालक बाईक से कालेज जा रहा है तो हम कहते हैं ध्यान से बाईक चलाना। कहने का उद्देष्य यह है कि वह मन को संयम में रखे, मन को आँखो पर रखे ताकि वह देख सके रास्ते में क्या हो रहा है।
हमारा निर्माण दो तत्वों से हुआ है। प्रकृति से और आत्मा से। ध्यान भी दो तरह का हो जाता है। एक सांसारिक और एक आत्मिक। सांसारिक ध्यान तो हम सब जानतें ही हैं क्या होता है। जितना भी हम मन को लगायेंगे किसी चीज पर उतना ही उस तत्व का ज्ञान हमे प्राप्त हो जायेगा। आज हम देखतें हैं हमने प्रकृति तत्वों की खोज की। पानी की संरचना क्या है? वायु आकाश इन खोजो से हमें बहुत लाभ मिला। वैज्ञानिको ने प्रकृति में जितना मन को केन्द्रित किया, जितना गहरे गए उतना ही प्रकृति तत्वों का रहस्य खुलता गया जो मानव समाज के काम आया। यह प्रकृति का ध्यान है।
इससे आगे आत्मा का ध्यान है। आत्मा यहाँ सर्वत्र है। हर वस्तु में आत्मा है उसके बिना किसी वस्तु का अस्तित्व नहीं है। अगर हम आत्मा के ध्यान में अग्रसर होते हैं तो हमें किसी भी वस्तु का ज्ञान आसानी से प्राप्त हो जाता है। हमारे ऋषियों ने आत्मिक ध्यान से अपने जीवन का श्रेयस भी प्राप्त कर लिया और प्रकृति की हर लाभकारी वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त किया जो मानव जीवन के कल्याण में काम आया। औषधि के वृक्ष से उसके रोग निवारक गुण, भौगौलिक एवं अन्तरिक्ष के सारे रहस्य ग्रह आदि का पता लगा केवल ध्यान द्वारा लगा लिया। आज तोप्रयोगशाला न हमारे सामने रखा। आज जो हम आविष्कार कर रहें हैं वह हमारे ऋषियों ने बिना प्रयोगशाला और संसाधन से केवल ध्यान के द्वारा पता लगा लिया था अपने मन को आत्मा से जोड़ कर।
अब प्रश्न इससे क्या लाभ?
आज मेरा मन मेरी बुद्धि प्रकृति से जुड़ी हुई है। प्रकृति मेरे शरीर की मालिक बन बैठी है। आत्मा अलग हो गई। आत्मा पर आवरण आ गया तो वह आत्मा का ज्ञान मुझमें नहीं रहा। मुझे प्रकृति का सारा ज्ञान हो गया। आत्मा को भूल गया। जबकि आत्मा में चेतनता है, पूर्ण ज्ञान है, समाधान है और शान्ति है। इसलिये हम यह देखते है कि हम चाहे कितने भी आराम की सामग्री, धन सम्पत्ति इकट्ठा कर लें लेकिन शान्ति नहीं मिलती। कितनी भी आप डिग्रियाँ प्राप्त कर लो पर समस्यायों का पूर्ण समाधान नहीं कर सकते क्योंकि प्रकृति में पूर्ण ज्ञान नहीं है। आत्मा में पूर्ण ज्ञान, शान्ति, समाधान है। इसलिये ऋषियों ने कहा हम आत्मा से जुड़े। यदि हमारा सम्बन्ध आत्मा से हो जायेगा तो यही संसार जो आपके पास है वह सुखमय हो जायेगा।
मेरे अन्दर राग, द्वेष, घृणा नहीं होगी सबके लिये प्रेम होगा। यह और-और समाप्त हो जायेगी सन्तुष्टि हो जायेगी। यह जितने भी आज विकृति हम देख रहें हैं सबका समाधान हो जायेगा। क्योकि प्रकृति में शक्ति तो है लेकिन दृष्टि नहीं हैं। शक्ति भी हो दृष्टि भी हो। बन्दर के हाथ उस्तरा दे दो आप का ही नुकसान करेगा। हम देखते हैं आज हमने परमाणु शस्त्र बना लिया और खतरनाक अस्त्र बना लिए पर डर यह लगता है कि कोई क्या विनाश नहीं। शक्ति तो इकटृठी कर ली पर दृष्टि नहीं है। अपना ही नुकसान कर रहें हैं। इसलिये टेन्सन है, अवसाद है सारी समस्यायें हैं वह हमारे सामने हैं। अध्यात्म में शक्ति भी है दृष्टि भी है। आवष्यक यह है कि हमारे पास दोनो हों। करना क्या है? आत्मा से जुड़ना है। यदि आत्मा से जुड़ जायेंगे तो शक्ति भी होगी साथ-साथ दृष्टि भी होगी। प्रकृति की शक्ति का ठीक से इस्तेमाल यहाँ कर लेंगे। उससे संसार में शान्ति फैलेगी। सबका समाधान होगा।
कैसे हम आत्मा से अपने को जोड़े ? मन मेरा ज्ञान लेने का यंत्र है। प्रकृति का ज्ञान लेंगे तब भी मन से लेंगे। आत्मा का ज्ञान लेंगे तब भी मन से लेंगे। मन मर गया तो ज्ञान भी नहीं मिलेगा। इसलिये साधना में कहते हैं मन सावधान रहे। बेहोशी न हो जाये। नींद में और ध्यान में क्या फर्क होता है? अवस्था दोनों में एक ही होती है। गहरी नींद में कोई भी विचार नहीं रहता। गहरे ध्यान में भी कोई विचार नहीं रहता। पर दोनों में एक बहुत बड़ा फर्क यह होता है कि नींद में जाते हैं तो वहाँ बेहोशी हो जाती है। बाहर भी बेहोशी और अन्दर भी बेहोशी। उसमें ज्ञान नहीं प्राप्त होता है। सो तो गये आनन्द तो प्राप्त हुआ पर ज्ञान नहीं प्राप्त हुआ।
आत्मा के ज्ञान के लिये क्या करते हैं? अवस्था तो वही आती है लेकिन इसमें अन्दर बाहोश है इससे हम बेहोश हो गये पर अन्दर से बाहोष अर्थात पूर्ण रूप से जागृत। सुषुप्ति में और समाधि में कोई विषेष अन्तर नहीं है। दोनो में निरविचार अवस्था, शांति है । अन्तर यही है कि सुषुप्ति में बाहर और अन्दर बेहोशी है लेकिन समाधि में बाहर प्रकृति से बेहोशी है पर अन्दर बाहोशी है। अगर अन्दर चेतनता नहीं रहेगी तो ज्ञान प्राप्त नहीं होगा। गुरु महाराज द्वारा प्रदत्त ध्यान का उद्देष्य यही है कि हम प्रकृति से निरपेक्ष हो जायें और आत्मा से सापेक्ष। आत्मा से जुड़ जायें। उस अवस्था में जाने के लिये हमारे वश की बात नही है। यह बिना गुरु कृपा से नहीं होता ।
ध्यान की चार अवस्थायें आती है। शरीर और मन दोनो को हम शान्त कर देंगे तो मेरी बुद्धि शान्त होगी। शरीर मन बुद्धि शान्त हो जाये तो मेरा अहम् शान्त हो जायेगा। जब यह चारो शान्त हो जायेगे तो मैं प्रकृति से निरपेक्ष हो जाऊँगा और आत्मा से सापेक्ष। आत्मा से जुड़ जाऊँगा। हमें यही करना है। साधना यही है।
‘तन थिर मन थिर बचन थिर सुरति निरति थिर होय। कहें कबीर या निमिश को कल्प न पावै कोय’। यही गुरु महाराज ने कहा। स्थिर बैठ जाओ। मन कैसे स्थिर होगा। ऐसा विचार करो परमात्मा का प्रकाश आ रहा है। मन को उधर लगा दो। मन स्थिर होगा। सुरति निरति थिर होय- तुम्हारी बुद्धि और अहम् शान्त हो जायेगें। एक निमिष के लिये यह अवस्था आ जाये जहाँ मैं पूर्ण शान्ति में चला जाऊँ तो यह एक कल्प की साधना इसमें प्रत्यक्ष करा देगी कि मैं क्या हूँ। मेरे स्वरूप में मेरा अवस्थान हो जायेगा।
आज मैं जो अपने को शीशे में देखता हूँ वह मेरा रूप है। यह केवल एक छाया मात्र है असली स्वरूप की। यह नाशवान है और वो शाश्वत है । मैं वही परमात्मा हूँ। इस संसार में आनन्द लेने आया था। लाभ यही मिलेगा कि संसार में रहेंगे, यहाँ का सुख, आनन्द लेंगे क्योंकि संसार जो है लीला स्थली है परमात्मा की। यहाँ हर समय रास लीला होती है। हमारे पास वह दृष्टि नहीं है। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को दृष्टि दी तब उसने देखा की वह क्या है, संसार क्या है।
ऐसे ही गुरु महाराज ने कहा यहाँ हर समय महारास होता है। हर समय भगवान कृष्ण की बंसी बजती है लेकिन हमारे पास वह दृष्टि नहीं है। उन्होने कहा दृष्टि मैं देता हूँ। देखो। वास्तव में जो उस अवस्था में गये देखा कि गुरु महाराज सत्य कह रहें हैं यहाँ शान्ति और आनन्द का स्त्रोत बह रहा है। यह सारा समाज मेरा परिवार है तू-तेरा मैं मेरा कुछ भी नहीं है। बहुत सरल साधना दी। न कठिन साधना करनी है, न जाप करना है , न तप करना है, न घर बार , नौकरी व्यवसाय छोड़ना है बस सुबह शाम आधे घन्टे मेरे सामने बैठ जाओ। अपने से कुछ नहीं करेंगे बस मुझे करने देंगे। जीवन का श्रेयस प्राप्त हो जाएगा ।
© 2019 - Atmbodh - All Rights Reserved