अध्यात्म शोभा की वस्तु नही है बल्कि जीवन जीने की एक कला है I अपने जीवन में श्रेयस प्राप्त करने की कला है I बहुत भाग्य से हमे यह मनुष्य शरीर मिला है I इस सर्वश्रेष्ठ ज्ञान की प्राप्ति के लिए राजाओं ने अपने राज्य त्याग दिए, नचिकेता जैसे उत्तम जिज्ञासु ने सब प्रलोभन त्याग दिये I इसका आशय सुबह-- शाम बैठने की साधना मात्र ही नही बल्कि जीवन के हर पहलू से जुड़ जाना इसका उद्देश्य है I इसका हमें जीवन में प्रयोग करना चाहए I
परम् पूज्य पंडित जी महाराज ने सन्तो की वार्ता नामक साहित्य में यही बताया है कि मैंने अध्यात्म का ज्ञान अपने जीवन में प्रयोग किया है और उनके लाभकारी परिणाम भी देखे है I इसी प्रकार यह आवश्यक है कि हम इसे अपने जीवन में प्रयोग करें और उतारे भी I अध्यात्म ज्ञान केवल साधना का या प्रवचन का ही विषय नही रह जाए बल्कि अध्यात्म ज्ञान हममे भर जाए I हमारे हर कार्य में अध्यात्म ज्ञान हो तब ही हमारा जीवन सुंदर होगा ।
जीव और बंधन का सीधा रिश्ता कर्म से है । जब मैं मन के सहयोग से कार्य करता हूँ तो संस्कार बनता है, उस संस्कार से अवरोध बनते है वही जीवन में मुझे भोगने पड़ते है और बन्धन का कारण बनते हैं । जब आत्मा के सहयोग से कार्य करता हूँ तो मुक्ति का कारण बनता है I उस कार्य का कर्तापन नही रहता और मुझे मुक्ति प्राप्त हो जाती है I मेरी इन्द्रियाँ कार्य करती है, अगर उनके कार्य को मै आत्मा के सम्मुख पेश कर दूँ तो मेरा जीवन सुंदर हो जाता है I लेकिन यह करे कैसे ?
भगवान कृष्ण ने गीता में इसका बहुत सुंदर निरूपण किया है । कर्म हमे करने होंगे I हमारी कर्म योनि है। बिना कर्म किये हम रह नही सकते हैI उसका उपाय भी भगवान कृष्ण स्पष्ट करते है । जो भी कार्य मैं करता हूँ उसे आत्मा के सम्मुख प्रस्तुत कर दूँ I तो उसका मुझे इनाम मिलेगा । यदि मन के सहयोग से करता हूँ तो उसका दण्ड मिलेगा I जो भी काम मैं करता हूँ वह अकर्म बन जाए। जब अकर्म बन जाएगा तब कर्म नही रहेगा, संस्कार नही बनेंगे I
गीता के अनुसार इसका उपाए है विकर्म, जो मेरे सब कर्मो को आत्मा के सामने प्रस्तुत कर देता है I इसलिए कर्म भी जानो विकर्म और अकर्म भी जानो I हमे हमारा हर काम अकर्म हो जाए तो मेरा हर काम पूजा हो जाएगा I चाहे मैं नोकरी कर रहा हूँ चाहे मै खेती कर रहा हूँ चाहे व्यापार कोई भी कर्म करूँ लेकिन आत्मा के सहयोग से कर्म करूँ वो सारा वह अकर्म हो जाएगा संस्कार नही बनेगा I यह हम अपने जीवन में कैसे करें ? हमारी साधना का ध्येय आत्मज्ञान प्राप्त करना, आत्मा को जानना, जीवन का श्रेयस प्राप्त करना है I इसका एक उपाय बताया कि मैं अपने हर काम को आत्मा के सामने प्रस्तुत कर दूँ । हमारी साधना और कुछ नहीं विकर्म है जिसका काम हमारे कर्मो को आत्मा के सम्मुख प्रस्तुत कर अकर्म बनाना है I
आत्मा ही गुरु है, आत्मा ही ईश्वर है, आत्मा ही मेरा ध्येय हैI हर व्यक्ति में आत्मा भी है और जीव भी है I जीव शिष्य है, आत्मा गुरु है I गीता में कृष्ण आत्मा है, अर्जुन जीव है । गीता का सारा संवाद है और कुछ नहीं आत्मा और जीव का संवाद है I इसमे आत्मा जीव के सारे संशय को मिटाता है । कृष्ण अर्जुन को सत्रह अध्याय तक बहुत ज्ञान देते है I भगवान अर्जुन को समझाते हैं कि जो तेरे किये हुए कार्य है, वह मेरे सामने प्रस्तुत कर दे I हम साधना मन से करेंगे तो उसमे संस्कार बनेगा I लेकिन यही मैं मन के सहयोग के लिए करूँ तब यह मेरी साधना मुझे मेरे गुरु के सामने प्रस्तुत कर देगी और जहाँ प्रस्तुत कर देगी वही मुझे आत्मा का आनन्द प्राप्त होगा I
आप सभी भी यह महसूस करते होंगे कभी कभी पूजा में बहुत आनन्द महसूस होता है, बहुत सुन्दर ध्यान लगता है । हुआ यही है आपकी साधना ने आपको आत्मा के सामने प्रस्तुत कर दिया I आत्मा के सम्मुख प्रस्तुत करने से आत्मा का आनन्द आपको प्राप्त हो रहा है ,ज्ञान शांति और सन्तुष्टि -- समाधान प्राप्त हो रहा है I आत्मा के सहयोग से हम काम करेंगे तब उसका फल हमे मिलेगा I एक उदाहरण से स्पष्ट कर दूँ ।
दो मुसलमान भाई थे I दोनों का विचार हुआ कि हज यात्रा कर जाएँ I दोनों ने खूब परिश्रम कर पैसा कमाया और हज यात्रा के लिए चले पड़े । जब पहला पड़ाव पड़ा एक तो सराय में ठहर गया और दूसरा किसी के घर में ठहर गया। जिस घर में वह व्यक्ति ठहरा था वह बहुत निर्धन परिवार था I रात्रि में उस घर की महिला को प्रसव पीड़ा हुई I उस व्यक्ति ने देखा कि यह तो प्रसव का दर्द है I उसने दाई इत्यादि का प्रबन्ध किया, घर पर कुछ खाने को नही था, खाने की सारी व्यवस्था भी कर दी I इसमे उसका सारा पैसा खर्च हो गया I इसलिए वह आगे की यात्रा नही कर सकता था। अतः वह व्यक्ति बीच से ही वापिस घर आ गया I दूसरा व्यक्ति हज यात्रा पर चला गया । हज समापन के समय उसने सुना कि हज कमेटी ने पहले व्यक्ति जो बीच यात्रा से ही वापिस आ गया था का नाम लेते हुए announce किया कि इनकी हज कबूल हुई । उसको बहुत आश्चर्य हुआ । वह लौट कर गाँव आकर पहले व्यक्ति से कहा भाई तुम हज यात्रा पर मिले भी नही I उसने कहा मै तो हज जा ही नही पाया। दूसरा व्यक्ति बोला अरे कैसी बात करते हो ? तुम तो हज में गए थे वहाँ तुम्हारा नाम पुकारा गया था कि इनकी हज कबूल हुई I तो पहले व्यक्ति ने बताया कि भाई मै क्या कहूँ ? जिस घर में मै ठहरा था उस घर की महिला को प्रसव दर्द हुआ I मैंने उसे भर्ती करवा दिया। देखा घर पर कुछ नही है मैंने खाने-- पीने की सारी व्यवस्था की सारा पैसा खर्च हो गया तो मैं लौट आया I इस घटना में दो बातें हुई । पहले व्यक्ति के आत्मा ने कहा भाई हज यही है इसकी सेवा करना है । उसने आत्मा की बात मान ली और पीड़िता की सेवा की। दूसरे व्यक्ति के मन ने सोचा कि मुझे हज जाना है और किसी की तरफ देखे बिना हज चला जाता हैI इसी का परिणाम हुआ कि पहले व्यक्ति की हज यात्रा कबूल हुई ।
आत्मा के सहयोग से जो कर्म करते है उसका सुन्दर फल मिलता हैI महात्मा गांधी जी की पुस्तक, MY EXPRIMENTS WITH TRUTH में पुस्तक में गांधीजी ने बतलाया कि उन्होने अपने जीवन के हर कार्य में सत्य को कैसे प्रयोग किया और उसका क्या परिणाम निकला । उसी तर्ज में हम आत्म ज्ञान को जीवन के हर पहलु में प्रयोग करे तो देखेंगे हम कहाँ से कहाँ पहुँच जाते है I अध्यात्म ज्ञान केवल साधना के लिए ही नही रह जाएं कि सुबह- शाम साधना कर ली तो मेरी ड्यूटी ख़तम। हर कार्य में - नोकरी, व्यापार या खेती कुछ भी करता हूँ उसमे इस अध्यात्म ज्ञान को प्रयोग करता रहूँगा तो जीवन का श्रेयस प्राप्त कर जाऊंगा । मेरा मन ध्यान में बहुत लगा, मै समाधि में गया था , इससे काम नहीं चलेगा । आपका व्यवहार कैसा है यह अध्यात्म बतलाता है I अध्यात्म आपको व्यवहार में उतारना है I सन्त कड़वा सुनते है पर मीठा बोलते है। अध्यात्म ज्ञान कड़वे को भी मीठे व्यवहार में बदल देता है I जिसका व्यवहार सुन्दर हो गया है, वह अध्यात्म ज्ञान का विद्यार्थी है और जीवन का श्रेयस प्राप्त कर जाता है ।
इसलिए यह आवश्यक हैं हमारे जो भी काम होते है आत्मा के सहयोग से हों । हमारे गुरुमहाराज ने वही चीज़ दी। उन्होंने कहा कि चौबीस घंटे होते है, तेईस घन्टे आप सारे काम करे, ईश्वर का नाम भी न ले पर आधा घण्टा सुबह शाम निकाल लें जहाँ पर केवल गुरु और आप हो, संसार न हो । आप उनके सामने बैठ जाएं। इतना कर लेंगे तो आप देखेंगे कि बड़ी सहजता से उस अवस्था को प्राप्त कर जाएंगे जब आप अपने सब कार्य को आत्मा के सामने प्रस्तुत करके करेंगे । कोई गलत काम नहीं होगा । जीवन सुन्दर हो जाएगा । श्रेयस को प्राप्त कर जाएंगे ।
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