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आत्मबोध: संगीत और ध्यान का संगम

भारत की भूमि सदियों से साधना, संगीत, और आध्यात्मिकता की पवित्र धारा में बहती आ रही है। आत्मबोध इसी परंपरा का एक अद्वितीय संगम है, जहाँ भारतीय शास्त्रीय संगीत और ध्यान की प्राचीन विधियों का अनूठा मेल होता है। यहाँ आत्मा की गहराई में उतरने और सुरों की दिव्यता का अनुभव किया जा सकता है।

भारत के अध्यात्मिक छेत्र में रामाश्रम सत्संग मथुरा एक क्रांतिकारी मशाल है । वर्त्तमान में इसी सत्संग परिवार के परम संत पूज्य श्री कृष्णकांत शर्माजी देश के कोने कोने में जाकर रामाश्रम सत्संग के संस्थापक समर्थ गुरु परम संत परम पूज्य डॉ चतुर्भुज सहाय जी के सन्देश एवं साधना शैली को अपने ओज पूर्ण , मधुर और प्रभावशाली प्रवचनों के द्वारा आत्मा का जागरण कर जन जन को प्रेम के एक सूत्र में बांधने का कार्य कर रहे हैं ।

आत्मबोध का उद्देश्य केवल संगीत या ध्यान सिखाना नहीं है, बल्कि वह आत्मिक शांति और संतुलन प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करना है, जो भारतीय संस्कृति के केंद्र में है। चाहे वह रागों की मधुरता हो या ध्यान की शांति, आत्मबोध आपको एक ऐसी यात्रा पर ले जाता है जो आपकी आत्मा को जागृत करती है और जीवन के सच्चे स्वरूप का बोध कराती है।

आत्मबोध में हम भारतीय संगीत और साधना की प्राचीन परंपराओं को आधुनिक जीवन के साथ जोड़कर, आत्मिक विकास और शांति की प्राप्ति का माध्यम बनाते हैं। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ सुर और साधना के माध्यम से आत्मा का साक्षात्कार होता है।

आत्मबोध का इतिहास

इतिहास का हर पन्ना

1980

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